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बरनवालों का अति संक्षिप्त इतिहास

बरन (बुलंदशहर) नामक नगर का इतिहास एक घनी और प्राचीन कहानी से भरपूर है। स्थानीय इतिहास के अनुसार, इस नगर की स्थापना महाराजा अहिबरन द्वारा की गई थी, जिन्होंने महाभारत युद्ध के बाद हस्तिनापुर के उजड़ जाने के बाद इस स्थान पर नगर बसाया। पंडित ज्वाला प्रसाद शास्त्री के अनुसार, बरन का इतिहास महाभारत के काल में तक पहुंचता है, जब यहां हस्तिनापुर की राजधानी थी। इसके पश्चात्, विभिन्न समयों में इस नगर पर महमूद गजनवी और मुहम्मद तुगलक के हमले हुए, लेकिन बरन के निवासी ने अपने साहस और वीरता से यहां की रक्षा की। बुलंदशहर जनपद के गठन के बाद, यह नगर मुख्यालय बनाया गया, लेकिन उसका प्राचीन नाम बरन रखा गया। आज भी बरनवाल लोग देश भर में विभिन्न राज्यों में बसे हैं और इस स्थान की समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत को गर्व से बचाए रखते हैं।

संक्षिप्त विवरण
संबंधित तथ्य

बरनवाल समुदाय समृद्धि, एकता, और सेवाभाव के प्रति पूर्ण प्रतिबद्ध है।

बरनवालों की एकता

बरन से पलायन के करीब 600 वर्ष बाद एकता के सूत्र में बांधने की कहानी।

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बरन बंधु

बरन वालों के एक सूत्र में बंधने की जरूरत पर एक कविता|


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बरनवाल जयघोष

बरनवालों का जयघोष, रचयिता: प्रवीण बरनवाल, मिर्जापुर।


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अहिबरन बंदना

महाराजा अहिबरन की वंदना, स्त्रोत: न्यास निर्देशिका, 1992


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हर घर अहिबरन

उद्देश्य

महाराजा अहिबरन जन्मोत्सव: बरन वालों के लिए एक गौरवमय कार्यक्रम

इस आयोजन से नहीं सिर्फ केवल एक कार्यक्रम, बल्कि सभी बरन वालों को एक सूत्र में बांधने की शुरुआत हो रही है, जिससे हमारी पहचान मजबूत हो और हम अपने इतिहास को बचाएं।

हम सभी बरन वाले हैं, और हमारी शानदार पहचान है कि हम महाराजा अहिबरन के वंशज हैं।

  • इस अवसर पर, हम सभी को अपनी कुलदेवी माता चामुंडा की पूजा करने का आह्वान करते हैं, जिसका इतिहास बरन के बीच विशेष महत्वपूर्ण है।
  • इस कार्यक्रम के माध्यम से हम सभी बंधुओं से आह्वान करते हैं कि वे अपने घर और/या प्रतिष्ठान में अपने आदिपुरुष की तस्वीरें लगाएं और गर्व से महाराजा अहिबरन के वंशज बताएं।
नवीनतम सुचनाये

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होली मिलन समारोह

होली मिलन समारोह, सिर्फ एक आयोजन नहीं, बल्कि एक सामूहिक समर्पण का प्रतीक है। इस मौके पर हम सभी मिलकर रंग-बिरंगे रंगों में डूबते हैं, एक-दूसरे के साथ जुड़कर, साजगों से जीवन को रंगीन बनाने का उत्साह भी बाँटते हैं

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महाराजा अहिबरन जयंती

महाराजा अहिबरन जन्मोत्सव, 2023 ( बरन) सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं है बल्की सभी बरन वालों को एक सूत्र में बांधने की शुरुआत है, अपनी पहचान को मजबूत करने और इतिहास को बचाने की मुहिम है।

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बरनवाल पताका प्रतियोगिता

पताका प्रतियोगिता का आयोजन अगस्त माह में किया गया था, जिसमे प्रविष्टियां भेजने की अंतिम तारीख 31 अगस्त थी। जिसकी घोषणा सोशल मीडिया माध्यम से जोरो शोरो से की गई थी और हमारे बंधुओ ने भी इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया,

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